माना कि तू मिट्टी सा है
पर कुछ भी उपजा सकता है ,
पर ध्यान रहे बढ़ते को
यह दुनिया रुक जा कहता है।
मगर घबरा मत अभी
तू बंजर जमीन है तो क्या हुआ,
ऊपर वाला पानी बरसाएगा
उठ और समझ खुद को जीया हुआ ।
तिनका जिधर की हवा
उधर का हो जाता है,
पर तिनका नहीं तु इंसान है
फिर क्यों ऐसे सो जाता है ।
माना तुझ में गरीबी पैसे की है
पर मेहनत सब कुछ दिलाता है,
कमा कर पैसा घमंड मत करना
जैसे आ जाए पैसे तो हर कोई इठलाता है।
कौन कहता है कि तुझ पर
कुछ भी नहीं लगता ना गोबर ना खाद,
घबरा मत इतनी सी बात पर
असर धीरे होगा पर होगा तब आएगा स्वाद।
अगर वाकई में तु समझ ना सका खुद को
तो तेरा जिंदा शरीर एक लाश है ,
और क्या कहूं जो खुद को कुछ बना सकता नहीं
वो खुद गंदी नाली से आता बास है।
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