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सुघ्घर-गोठ (1)

1 माफ़ उही ल करे जाथे,जेन ह,  माफ़ी मांगे से पहली  बदल जाथे... 2 कुरही (मटका) से जतेक पानी पझरथे  ओतके पानी ह चांय(ठंडा)  करथे ठीक ओइसने परकार ले हमर देहे ह घलोक आय। गोठ के तात्पर्य :- जतेक मेहनत करबे ओतके पसीना फुटही । 3  उपरे - उपर ले सुन्दर दिखने वाला माटी ह भीतर डहर ले पथरीला होही त ओखर कोनो मोल नई रहय । 4 सफलता ह कभू भी  तीर-तखार म नई रहे  दुरिहाच म रइथे  अउ ओखर तक  कमइयाच ह (मेहनती) जा सकथे । 5 आज घाम म कोनो खड़ा नई होना चाहत हे लेकिन वो ह हमर एक-एक स्वांसा बर घाम म खड़े हे जेन ल हमन रुख-राही कहिथन । 6 सोन अउ मनखे जब टघलथे (पिघलथे)  तभेच ओमन दुनिया म चिकमिकाथें । 7 माफ़ी मांगत घानी (समय) हर कोई बदल जाथें  लेकिन हमेशा बर  कोई नई बदल सकंय । 8 जेन ह आँखी के आघु म होथे  तिही ल बिसवास करव ... काबर के सुने गोठ ल तो सबो गोठियाथें । 9 सिर्फ चिक्कन कांच ल देखव ओखर बुराई झन करव काबर के दरगढ़हा(खुरदुरापन) तो आपमन के चेहरा ह हावय दरपन म नइये । 10 जंगली टेटका (गिरगिट) अउ मनखे  कभू एक रंग म नई रहे सकंय ।