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Ghar per dimag Nahin Dil Se Kam Lena chahie

Ek Gaon Mein Kareeban 1200 ki jansankhya thi jismein do Parivar Golu Aur Shyam Ka Bhi Tha.Golu ke Parivar ki dincharya acche tarike se Gujar jaati thi Kyunki vah rojana kam per jata tha, isliye Golu bahari Logon se aur Anjan Logon se Kafi ghul mil Sa Gaya Tha. Magar Apne Parivar ke sadasyon ke sath uski bahut khinchatani hoti Thi Jab Bhi Koi Ghar per Baat Nikalti to vah bahas karne Par Utar aata tha aur Parivar Walon se Roj jhagada Karke Bahar chala jata tha Uske Parivar wale yah samajh Nahin Pa rahe the ki Golu Itna chidchida Kyon Ho Jata Hai Hamesha Sidhi baat ka Ulta jawab kyon deta hai  Vahi dusri taraf se kam Sab Logon se Ghul Mil kar rahata tha Apne Parivar se bhi aur Bhari Anjan Logon se bhi Jab Golu ke Parivar wale Shyam Se puchne Lage ki Golu Parivar Ke Logon se Itna Chidha Chidha kyon rahta  Hai Tum To Uske Dost Ho Tumhe Pata hoga, Tab Shyam Ne Kaha Mujhe is bare mein pata nahin hai lekin Main Ek Aise Baba ko Jaanta hun jo Golu ko theek kar sakte hain, Agale Din Golu Aur Shya

धन का गरीब मगर दिमाग का अमीर...

एक लड़का था जो धन से बेहद गरीब था ,उसके परिवार में बस दो सदस्य ही थे वो लड़का और उसकी माँ ,लड़का दस साल का था मगर दिमाग से बड़ा खुरापाती था बिजनेस के क्षेत्र में उसका दिमाग घोड़े की तरह दौड़ता था इस लिए वह अपने परिवार को पालने की हिम्मत रखता था एक गजब की बात यह है कि वह मात्र पांचवी क्लास में पढता था ,                                       वह सबेरे तीन बजे से उठ जाया करता था और उठकर खाना बनाने में माँ की मदद करता था साथ ही अपने स्कुल के लिए तैयार होता था ,,,     वह स्कुल जाने के लिए निकलता माँ अपने टी स्टॉल को जाती मगर लड़का सीधे न्यूज़ एजेंसी की और भागता है ,,,वहां से वह न्यूज़ पेपर उठाता और स्कुल वाले रास्ते में पड़ने वाले सभी घरों में अख़बार पहुंचाता और रोज अपने लिए भी एक अख़बार रख लिया करता था इस तरह अख़बार बांटते-बांटते वह स्कुल भी सही समय पर पहुँच जाता था , स्कुल में अपना हर सब्जेक्ट का क्लास पूरा करता और लंच टाइम में लंच करके अपने बैग में रखे अख़बार को निकालकर पढ़ने लगता अखबार में दिए गए मैन हेडिंग को और सामान्य ज्ञान को अपने डेली डायरी वाले नोट बुक में नोट करता था सुबह के 7:30 को स्क

वो बचपन के खेल

बचपन के खेल कुछ निराले ही होते हैं अगर बच्चो को खेलते हुए देख लिया जाये तो बचपन की याद आ जाती है... आज का यह खेल छत्तीसगढ़ का है जिसे "डग्गल" कहा जाता है यह क्षेत्र के अनुसार अलग अलग नामो से भी जाना जाता है कहीं पर इसे "मारतुल" भी कहा जाता है ऐसे कई अन्य नाम हैं इस खेल का नियम बड़ा गजब का है तो आइये देखते हैं एक गोला बनाया जाता है गोले से दो कदम पीछे सीधा लकीर होता है जहाँ सभी बच्चे खड़े होकर गोले में पत्थर फेकते हैं गोले में पत्थर फेकते हुए किसी एक के पत्थर को मारा जाता है जिसके पत्थर से टक्कर होती है वह हार जाता है और वह दाम देने लगता है यहाँ पर एक शब्द आ रहा है दाम का, तो "दाम" का मतलब होता है "सजा भुगतना " फिर गोले से 7 कदम दूर एक सीधा लकीर खीचा जाता है जहाँ हारने वाले को अपना पत्थर खड़ा करके रखना होता है और जो जीते हुए बच्चे रहते हैं उनके द्वारा उस खड़े पत्थर को टक्कर मारकर गिराना होता है जब-जब पत्थर गिरता जाएगा तब - तब हारने वाला आगे बढ़ता जायेगा आखिर में किसी के भी द्वारा पत्थर न लगने पर वह हारने वाले बच्चा एक पैर से लंगड़ाते हुए गोल

मुँह में अँधेरा ...

यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है किसी भी प्रकार की वास्तविकता से सम्बंधित नही है ! आज साइंस के अध्यापक टेस्ट लेने वाले थे सभी बच्चे घबराये हुए थे साइंस के अध्यापक ने क्लास में घुसते ही बच्चो को तपाक से पूछा की, क्या आप में से कोई भी माँसाहारी है मतलब कोई मछली-मुर्गा कुछ भी खाता है ? क्लास में उपस्थित 43 बच्चो में से 6 ने हाथ ऊपर किया ! तब अध्यापक ने कहा क्या आप मछली के कांटो को भी खाते समय चबा जाते हैं ? एक बच्चे ने कहा जी सर बिलकुल ! अध्यापक:- क्या आपको जरा भी डर नही लगता के कांटे मसूड़ो में चुभ सकते हैं ! बच्चा :- बिलकुल भी डर नही लगता सर क्योंकि मैं बहुत ध्यान से चबाता हूँ ! अध्यापक :- शाबाश ! बच्चो इसी तरह अपने अन्दर समाये बुराइयों को भी चबा जाओ अगर चबाना नही आता तो सीख जाओ क्योंकि नही चबाये तो वह आगे चलकर पुरे चरित्र में घाव पैदा कर देगा ! मैंने जो कहा वो सिर्फ मांसाहारियों के लिए ही नही है बच्चो आप सब के लिए है क्योंकि बुराई माँसाहारी है या शाकाहारी है किसी को नही देखता !

महिला ने मजदूरों को वापस लाया

ध्यान देवें:- यह कोई काल्पनिक कहानी नही है बल्कि वास्तविक घटना है जो सन 1986 की है! 1986 में छत्तीसगढ़ के 16 जोड़े इन जोडों में सभी सदस्यों को मिलाकर करीब 60 सदस्य जिनमे शिशु से लेकर बुजुर्ग भी थे, सभी बेरोजगारी के चलते रायबरेली ईंट भट्ठा में काम करने गए थे !                     जहाँ उनके मेहनत का पैसा सही समय पर नही दिया जाता था ना ही खाना बनाने के लिए जलाऊ लकड़ी तक नही दिया जाता था जलाऊ लकड़ी न दे पाने के कारण मजदूरों को पेड़ काटकर खाना बनाने हेतु इस्तेमाल करने को कहा गया मजदूरों ने वही किया और फिर रेंजर ऑफिसर को किसी अन्य व्यक्ति ने शिकायत कर दिया जिसके बाद मजदूरों को थाना ले जाया गया और उन्हें दण्डित कर 3 दिन बाद छोड़ा गया                    इस तरह दण्डित होने व तकलीफों से गुजरने के कारण सभी ने ईंट भट्ठा मालिक से छुटकारा पाने की ठानी और सभी मजदूरों ने भट्ठा मालिक से शिकायतें की मगर भट्ठा मालिक ने उनकी शिकायतों को अनसुना कर दिया जिसके कारण सभी मजदुर पलायन करने की सोचने लगे और भट्ठा मालिक को बताकर दूसरे दिन अपना छत्तीसगढ़ वापस आने लगे.... रायबरेली रेलवे स्टेसन में मालिक द्वारा उनको